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( जैन पाठावली
वसुदेव की अनेक स्त्रियाँ थी । उनमे से रोहिणी की कूंख से बलदेव उत्पन्न हुए और देवकी से श्रीकृष्ण का जन्म हुआ इस प्रकार नेमिनाथ, श्रीकृष्ण चचेरे भाई थे ।
पाँचजन्य शख को वासुदेव के सिवाय कोई उठा भी नहीं सकता था । वजाने की तो बात अलग रही । इसी कारण जंव नेमिनाथ ने 'शख वजाया तो सब अचरज में पड गये । 'मगर नेमिनाथ के लिये वह खिलवाड था ।
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एक वार वासुदेव ने अपना हाथ नगाने के लिये कह कर उनके वल की दूसरी बार परीक्षा कर ली । नेमिनाथ न वासुदेव का हाथनमा दिया मगर वासुदेव उनका हाथ नही नमा सके | नेमिनाथ, 'वासुदेव से उम्र मे छोटे थे किन्तु बल में as थे |
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नेमिनाथ के बल की सभी जगह प्रशसा होती थी। वह जैसे बलवान् थे, वैसे ही सुन्दर थे । चासुदेव का सत्यभामा आदि स्त्रियो के साथ विवाह हुआ था । नेमिनाथ कुँवारे थे । माता-पिता की पुत्र को व्याहने की लालसा थी । लेकिन पुत्र की
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इच्छा के विरूद्ध वे कोई काम करने के लिए तैयार नही थे । अव वासुदेव के मन में आया कि छोटे भाई का विवाह करना चाहिए ।
एक बार उन्होने अपनी रानियो से इस विषय मे वातचीत की। भोजाइयो ने कई उपायो से देवर को मना लिया । राजा उग्रसेन की पुत्री के साथ सगाई हो गई । पुत्री का नाम था राजीमती । राजीमती तो बस राजीमती ही थी । सरस्वती
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