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तृतीय भाग) उपदेश देती थी। वह उनसे चोरी वगैरह के दोपो का त्याग करवाती थी वह रोगियो की भी सेवा किया करती थी ऐसी बाई को भला कौन नहीं चाहता ? समस्त प्रजा के हृदय में उसने अपना स्थान बना लिया।
* नल और दमयन्ती जगल में कही निकल गये' है, यह समाचार भीमनाथ को मालम हए । उसने चारो ओर दूत भेजे । .. एक दून खोजता-खोजता वहाँ आया। दूत ने दमयन्ती को पहचान लिया। तव चन्द्रयशा को पता चला कि दमयन्ती मेरी वहिन की बेटी है। फिर किस बात की कमी थी? आखिर दमयन्ती के माता-पिता भी वहाँ आ गये। ऋतपर्ण और चन्द्रयशा ने सेवा करने में कसर नही रक्खी । थोडे दिनो के बाद अपनी प्रिय पुत्री दमयन्ती को माता-पिता साथ ले गये। दमयन्ती को किसी चीज की कमी नही है। फिर भी उसके दिल में नल की ही लगन लग रही है ।
नल, दमयन्ती से जब अलग हुआ तो उसे एक बार साँप ने काट खाया। मानो सती को जगल में अकेली छोड देने का बदला उसे मिल गया | साँप के काटने से नल बच गया, मगर कुबड़ा हो गया । वह शरीर से चाहे कुबडा हो गया मगर गुणा से वह सुन्दर ही था । गुण हो तो कुबडापन लज्जा की वात नही । अगर गुण न हुए तो रूप किस काम का | ढाक के फूल देखने मे बहुत सुन्दर होते है, और कस्तूरी काली होती