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तृतीय भाग )
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को धारा बहने लगी । भगवान् ने सुबाहुकुमार की भक्ति देखकर पूछा - 'सुवाहु |" तुम्हारी क्या इच्छा है ?
गद्गद कण्ठ से सुबाहु ने कहा- 'प्रभो । आपके सत्सग में निरतर रहकर पूर्ण साधुता का पालन करना योग्य है, लेकिन इस समय में अपनी शक्ति के अनुसार गृहस्थधर्म को स्वीकार करता हूँ ।'
भगवान्
ने उत्तर दिया- ' जैसी तेरी इच्छा ।'
सुबाहुकुमार सपूर्ण दीक्षा लेने के लिए छटपटा रहा था; मगर उसने पहले श्रावक की दीक्षा ली ।
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वह घर गया पर चित्त उसका भगवान् मे ही लगा था । उसकी नस-नस में वैराग्य रम रहा था। उसकी पांच सौ स्त्रियो ने उसे वैराग्य से हटाकर राग की ओर खीचने का प्रयत्न किया । सुबाहु के सामने उन्हीं की हार हुई । वह सासारिक इच्छाओ से उदासीन रहने लगा | उसकी ज्ञानमय श्रद्धा दिनो दिन बढने लगी ।
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सुबाहुकुमार (२)
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विहार करते-करते भगवान् महावीर फिर उसी नगर में पधारे । सुबाहुकुमार के आनन्द का पार न रहा । वह प्रभु को वन्दना करने के लिए गया । भगवान् के सामने उसने अपनी इच्छा प्रकट की । भगवान् ने उसकी स्थिति देखकर कहा