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________________ तृतीय भाग ) ( १४७ W को धारा बहने लगी । भगवान् ने सुबाहुकुमार की भक्ति देखकर पूछा - 'सुवाहु |" तुम्हारी क्या इच्छा है ? गद्गद कण्ठ से सुबाहु ने कहा- 'प्रभो । आपके सत्सग में निरतर रहकर पूर्ण साधुता का पालन करना योग्य है, लेकिन इस समय में अपनी शक्ति के अनुसार गृहस्थधर्म को स्वीकार करता हूँ ।' भगवान् ने उत्तर दिया- ' जैसी तेरी इच्छा ।' सुबाहुकुमार सपूर्ण दीक्षा लेने के लिए छटपटा रहा था; मगर उसने पहले श्रावक की दीक्षा ली । 7 वह घर गया पर चित्त उसका भगवान् मे ही लगा था । उसकी नस-नस में वैराग्य रम रहा था। उसकी पांच सौ स्त्रियो ने उसे वैराग्य से हटाकर राग की ओर खीचने का प्रयत्न किया । सुबाहु के सामने उन्हीं की हार हुई । वह सासारिक इच्छाओ से उदासीन रहने लगा | उसकी ज्ञानमय श्रद्धा दिनो दिन बढने लगी । tom सुबाहुकुमार (२) f विहार करते-करते भगवान् महावीर फिर उसी नगर में पधारे । सुबाहुकुमार के आनन्द का पार न रहा । वह प्रभु को वन्दना करने के लिए गया । भगवान् के सामने उसने अपनी इच्छा प्रकट की । भगवान् ने उसकी स्थिति देखकर कहा
SR No.010283
Book TitleJain Pathavali Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrilokratna Sthanakwasi Jain Dharmik Pariksha Board Ahmednagar
PublisherTilokratna Sthanakwasi Jain Dharmik Pariksha Board Ahmednagar
Publication Year1964
Total Pages235
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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