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(जैन पाठावली दर्शन के लिए गये हैं । महाराजा ने आपको याद किया है और यह सदेश भेजा है।'
भगवान् महावीर को केवलज्ञान प्राप्त होने के बाद की यह बात है। केवलज्ञान प्राप्त होने के बाद भगवान् तीर्थ की रचना कर चुके थे । इस समय वे अपने उपदेश और जीवनव्यवहार के द्वारा प्रकाश फैला रहे थे ।
सुवाहुकुमार, भगवान् की कीर्ति पहले ही सुन चुके थे। साक्षात् दर्शन नही हुए थे और न उपदेश ही सुना था । सुवाहुकुमार को एकदम जिज्ञासा उत्तन्न हुई। रमणियो के बीच क्रीडा करने वाले सुबाहुकुमार तत्काल सावधान हो गय । दलदल में फंसे हाथी को कोई वाहर निकाल दे तो हाथी को जैमा आन द होत' है, वैमा ही आनन्द सुवाहुकुमार को हुआ । वह भगवान् के पास गय । उम शान्त, दान्त, कान्त और आनन्दकन्द मूर्ति को देखते ही सुबाहुकुमार को पूर्व भव का स्मरण हो आया ।
उमने जान लिया कि वह पहले भव मे सुमुख नामक गाथापति था । धर्मघोष मुनि के सुशिप्य सुदत्त मुनि के साथ उपका समागम हुआ। उसने भावपूर्वक उन तपस्वी को भिक्षा दो थी।
इस दृश्य की स्मृति के साथ ही साथ उसके दिल में वैराग्य भडक उठा । वासना के सस्कार भस्म होने लगे 1 उसने उपदेश सुना । और सव चले गये किन्तु सुवाहुकुमार का जी भगवान को छोड़ने को ही नही चाहता था,।, आँखो से प्रेमाश्रु