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(जैन पाठावली
है फिर भी कस्तूरी की कद्र की जाती है । ढाक के फूलो को कौन पूछता है ?
सुसुमारपुर के राजा दधिपर्ण के पास कुवडा नल रहने । लगा । वह मजेदार रसोई बनाता है। सूर्य की किरणो से । खीर बनाने की कला भी उसे आती है।
किसी तरह दमयन्ती को नल का पता चल गया । उसने अपने पिता से सारी बात कही । पिता ने कोई वहाना करके दधिपर्ण को न्यौता दिया । दधिपर्ण का कुवडा रसोइया भी . साथ गया । वहां पहुंचने पर सब को विश्वास हो गया कि यही नल है।
नल और दमयन्ती का फिर मिलन हुआ । धन्य है ऐसे । नल को चाहने वाली सती दमयन्ती ।
नल ने कुबेर से अपना राज्य फिर ले लिया । दमयन्ती फिर महारानी बन गई । कुछ दिनो वाद उसको एक बालक की प्राप्ति हुई । उसका नाम रक्खा गया-पुष्पकर ।
कुमार के वडा होने पर उसे राज्यगद्दी सौंपकर राजा नल और महारानी दमयती दोनो ने ही आत्मा का कल्याण किया ।
सुवाहुकुमार
(१) धन्य धरिणी के सु-सुत, कुंवर सुबाहुकुमार, राज तजा तृणक्तु तथा तजी पांच सौ नार ।