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( जैन पाठावली उस तरफ नजर पहुंची जहाँ जमीन पर कुछ अक्षर लिखे थे। वहाँ इस प्रकार लिखा था
'देवी ! तुम्हे सख्त आघात लगेगा मगर मै निर्दय होकर जा रहा हैं । तुम कुण्डिनपुर चली जाना । मेरी चिन्ता मत करना । मेरे हृदय मे तुम बसी हो । समय आने पर अवश्य मिलेगे।'
___ नल भले ही निर्दय हो गये मगर सती दमयन्ती अपने प्रियतम को नहीं भूलती ।
वन में चलते-चलते .एक सार्थवाह मिला। दमयती उसके साथ हो गई और किसी नगर मे जा पहुंची। वह एक तालाब के किनारे बैठी थी । इतने मे वहाँ की रानी की दासी आई और उसने दमयती को देखा । उसे क्या आई । रानी की आज्ञा लेकर वह दासी दमयती को राजमहल मे ले गई। दमयती वही रहने लगी। रानी चन्द्रयशा दमयन्ती की मौसी लगती थी। पर दयमन्ती को यह वात मालम नही थी। दमयन्ती बहुत ही विनयशीला थी। उसके ऊपर सभी को प्रेम उमडता था। विनय से वैरी भी वश मे हो जाते हैं । धीरे-धीरे सारा नगर दमयन्ती को पहचानने लगा।
कुछ दिनो के बाद राजा ऋतुपर्ण ने दमयन्ती को अपनी देखरेख का काम सौपा। दमयन्ती भलीभाँति उसे सभालने लगी । वह कैदियो से भी मुलाकात करती और उन्हे अच्छा