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________________ तृतीय भाग ) (१४५ हस्तिशीर्षी नामक विशाल नगर था । वहाँ के राजा का नाम अदीनशत्रु था । उसके धारिणी नामक रानी थी । रानी की कूंख से एक पुत्र उत्पन्न हुआ । उसके लम्बे और मजबूत बाहु थे । इस कारण उसका नाम पडा-सुबाहुकुमार । "सुवाहुकुमार राजा का एकलौता बेटा था । लालन-पालन मे राजा ने कोर-कसर नही की । पढाया-लिखाया और होशियार किया । 1 कुमार जवान हो गया । शरीर जैसा स्वस्थ वैसा ही सुन्दर था । माता-पिता ने उसकी राय लेकर विवाह कर दिया । वह पुष्पचूला आदि पाँच सौ पत्नियो का स्वामी बना। उसे पाँच सौ. महल दिये गये । एक-एक महल मे एक-एक पत्नी रहती थी । सुवाहुकुमार की सभी पत्नियाँ उसे खूब चाहती थी । इस तरह दिन पर दिन बीतने लगे । एक दिन अपनी पाँच सौ पत्नियो के साथ सुबाहुकुमार वन विहार के लिये निकला । वहाँ सरोवर मे छिप कर ढूंढने का खेल चल रहा था । उसी समय सुबाहुकुमार की नजर नगर के दरवाजे की तरफ गई । चीटियो की तरह मनुष्यों का ताता लगा था। सभी लोग जल्दी-जल्दी वन की ओर बढ़े चले आ रहे थे । सुबाहुकुमार सोचने लगा-इतने सारे लोग कहाँ जा रहे होंगे ? इतने में ही सामने से दोडकर आते हुए दूत ने हाँफते - हाँफते कहा / 'युवराजजी ! भगवान् महावीर पधारे है । महाराज, महारानीजी, मत्रीजी, 'महाजन और प्रजाजन सभी भगवान् के 1 3
SR No.010283
Book TitleJain Pathavali Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrilokratna Sthanakwasi Jain Dharmik Pariksha Board Ahmednagar
PublisherTilokratna Sthanakwasi Jain Dharmik Pariksha Board Ahmednagar
Publication Year1964
Total Pages235
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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