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(जैन पाठावली
( २) पंचालराज द्रुपद की पुत्री अथवा पाचाली (दौपदी) ने अर्जुन के गले मे माला डाली । मगर कौतुक यह हुआ कि जैसी माला अर्जुन के गले में पड़ी थी, वैसी ही माला उनके चारो छोटे-बडे भाइयो के गले में भी दिखाई दी । यह विचित्र बात . देखकर सारी सभा को अचरज हुआ । द्रुपद दुविधा में पड़ गये। ___उसी समय एक ज्ञानी पुरुष पधारे । उन्होने, खुलासा किया कि द्रौपदी ने अपने पहले भव में ऐसा निदान (नियाणा) किया है । उसी निदान के कारण इस समय ऐसा हुआ । यह पांचो पाडव भाई-भाई हैं। पवित्र वृत्ति वाले हैं। परस्पर प्रेम वाले है। द्रौपदी इन पाँचो की सेवा करेगी । यह पाँचो की प्रीति को जोड़ने वाली साकल बनेगी। यह पाँचो की पत्नी कहलाएगी।। लेकिन इन पाँचो की वह इस प्रकार सेवा करेगी जिससे उसके . सतीपन में कोई बाधा न आए । पांचाली के सयम और चारित्र की छाप पाँचो पतियो पर पडेगी। इसलिए किसी को किसी भी तरह की शका नहीं करनी चाहिए ।
इतना कहकर ज्ञानी पुरुप अपने रास्ते चले गये । दौपदी पांच पतियो की सती स्त्री वनी । वह सुखपूर्वक अपना समय बिताने लगी।
इसी बीच एक विपदा आ पडी। द्रौपदी के स्वयवर में हारा हुआ कर्ण जल-भुन रहा था । पांडवो की चढती देखकर दुर्योधन की आँखो से भी आग बरस रही थी। उसे मामा शकुनि