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तृतीय भाग )
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रक्खी है । नीचे एक धनुष रखखा हुआ है । मुँह नीचा करके, घूमते हुए चक्रो में से उस पुतली को वेध देना राधावेध कहलाता है ।
मथुरा का राजा उठा। विराट देश के राजा ने भी' उठकर बहुन मिहनन की। मगर वे कुछ भी न कर सके । नदापुर का राजा शल्य अपनी शेखी बघारने लगा -- 'मै क्या नही कर सकता ? देखो, में राधावेध करता हूँ।"" मगर उसकी शेखी धूल में मिल गई । बेचारें शिशुपाल राजा के तो घुटने ही टूट गये । दुर्योधन माथा खुजाता - खुजाता वापिस लौटा । वीर कर्ण भी हताश हो गया ।
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यह देखकर द्रुपद राजा ने कहा- 'अरे । इतने सारे राजा इकट्ठे हुए हैं, पर मेरा प्रण कोई भी पूरा नही कर सकता? स्वयंवर खाली जायगा तो मेरी हँसी होगी, परन्तु दुनियाँ में तो तुम सबो की बेइज्जती होगी । '
इतने में एक नौजवान चमक उठा। उनका नाम था अर्जुन' । वह द्रोण गुरु का प्यारा और प्रथम शिष्य था । युधिप्ठिर और भीम का छोटा भाई था । सहदेव और नकुल का वढा भाई और पाण्डु राजा का पुत्र था । कुन्तीदेवी का लाडला लाल था । उसने देखते ही देखते सावधान होकर धनुष उठाया और राधावेध कर दिया। अर्जुन के जय-जयकार से सभा मण्डप गूंज उठा ।