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तृतीय भाग )
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तो अपने ही ध्यान में मग्न रहते है । केवलज्ञान होने से पहले न देना उपदेश और नही बनाना चेला - चेली । यह महावीर स्वामी का निश्चय है । चन्दनबाला राह देख रही है कि कब भगवान् मुझे दीक्षा दे !
आखिर चन्दनबाला की भावना फली । भगवान् महावीर को केवलज्ञान हुआ । उन्होने उपदेश देना आरम्भ किया । बहुत - बहुत लोग आते । पशु भी आते । जो उपदेश के अनुसार आचरण करने लगे उनका सघ बन गया । सघ को तीर्थ भी कहते हैं ।
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तीर्थं चार हैं - साधु, साध्वी, श्रावक, श्राविका । सबसे पहले चन्दनबाला साध्वी हुई । वे ३६००० साध्वियों में अग्रगण्य बनी ।
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चन्दनबाला ने जैसे सयम लिया उसी तरह सुन्दर रूप से पाला । आगे जाकर उन्होने मोक्ष प्राप्त किया ।
जीवन भर कुँवारी रहकर ब्रह्मचर्य का पालन किया । अनेक दुखो मे से, अनेक कसौटियों पर कसी जाकर वह खरी सिद्ध हुई ।
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धन्य है सती चन्दनबाला
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ऐसी वीरागनाएँ ही जैन समाज को उज्ज्वल कर
सकती हैं ।
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