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__तृतीय भाग)
"द्रौपदी के इन वचनो को सुनकर सभा विचार मे पड गई।।
द्रापा
विदुर मौका पाकर कहने लगे-'शाबाश ! बेटी शाबाश धन्य है तेरी बुद्धि को । वास्तव मे दौपदी का कथन नीतियुक्त है । नीत्तिवेत्ताओ । द्रौपदी के प्रश्न का उत्तर दो।'
सभा में सन्नाटा छा गया । इतने में दुर्योधन बोला-- 'यह नीति तो युधिष्ठिर को विचारनी थी। हम द्रौपदी को जीत चुके है ।' कर्ण ने हाँ मे हाँ मिलाते हुए कहा-'ठीक है, दुर्योधन का कहना ठीक है।'
दुश्शासन को शह मिल गई। उसने सती द्रौपदी का चीर पकडा । भीम की भुजाएँ फडकने लगी । अर्जुन की आखो से लोहू बरसने लगा । युधिष्ठिर सिर पर हाथ देकर नीचे की तरफ देखने लगे।
ऐसे समय भगवान् के सिवाय और कौन बेली है ? सती बोली-'शासनदेव । अगर मैने मन, वचन और काया से पति-- व्रत की आराधना की हो तो मरी लाज रखना ।'
पतिव्रत की महिमा अपार है।
वस्त्र खीचते-खीचते दुश्शासन थक गया । मगर चीर का कहीं अन्त ही नहीं आता था । .. सती की लाज़ रह गई । सभा मे जय-जयकार हुमा ।
सती द्रौपदी इस कसौटी पर खरी उतरी।, ; .