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जैन पाठावली )
अर्थ
पांचवां अणुव्रत स्थूल परिग्रह से विरमण । १ खेत्त क्षेत्र, वाडी, बगीचा आदि, २ वत्यु ( वस्तु ) - मकान, बगला, दूकान, वखार वगैरह । ३ हिरण्ण-चांदी और चांदी के जेवर, ४ सुवण्णसोना और सोने के जेवर, ५ घण-रोकडी रुपया, नोट, बॉन्ड, - शेयर, कैश सर्टिफिकेट आदि, ६ धन चोवीस प्रकार का धान्यअनाज, ७ दुपद - मनुष्य दास, दासी, पक्षी आदि दो पैर वाले ८ चउप्पय- पशु, ढोर आदि चार पैर वाले, ९ कुप्प - तावा, पीतल आदि धातुओ की चीजें, फरतीचर वगैरह ।
इन नौ प्रकार के परिग्रह का मैने इच्छा परिमाण किया है । इसके उपरांत अपने उपयोग के लिए संग्रह करने का
में त्याग करता हूँ ।
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मै जीवन पर्यन्त एक करण तीन योग से, मर्यादा उपरात परिग्रह क्लूगा नही, मन, वचन, काया से परिग्रहपरिमाण के पाच अतिचार शेय है,
इस प्रकार
मूल (१) खेत्तवत्थु - पमाणाइक्कमे
ऐसे पांचवे स्थूल उपादेय नहीं । वे
अर्थ
संत, मकान, आदि के परिमाण का उल्लघन
किया हो ।