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(तृतीय भाग तप की यह वास्तविक प्रणाली विवेक-ज्ञान के विना कभी भी परिपूर्ण नही हो सकती है। इसलिए ज्ञानपूर्वक तप किया जाय, तभी सकाम निर्जरा हो सकती है, नही तो जैसे अन्य साधनो मे धर्म के स्थान पर पुण्य, पाप अथवा अधर्म की सभावना है वैसे ही इसमे भी हो सकती है । साधन की सिद्धि का आधार
साधन चाहे जितना उन्नत हो तो भी आखिर मे है तो वह साधन ही । इसलिए साधन को साधन ही मानकर उसका उपयोग करना चाहिये । साधन द्वारा साध्य तभी प्राप्त किया जा सकता है, जब कि मनोवृत्ति शुद्ध हो । ___ तप, यह निर्जरा का साधन है किन्तु यदि मनोवृत्ति शुद्ध न हो तो वह तप निर्जरा का साधन नही बन कर आश्रव क निमित्त भी बन सकता है । इस सम्बन्ध मे एक उदाहरण द्वार अपन समझने का प्रयत्न करे ।
एक कैदी को कमरे मे बन्द कर उसे · सारे दिन खानपीने न दे और एक ज्ञानी अपने आत्मध्यान मे मग्न होक सारा दिन बिना अन्न-जल के निकाले, इन दोनो-में सामान्यतया अनाहार के कारण तप करना कहा जायगा । बाहय द्दष्टि से दोनो की ( नही खाने रूप ) क्रिया समान ही है, परन्द भावना की दृष्टि से- दोनो की स्थिति मे आकाश-पाताल क अन्तर है।