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-(तृतीय भाग
१०८)
(५) आयु लोहे की बेडी के समान है, जहाँ तक इसरे छुटकारा नही मिले वहाँ तक मोक्ष की प्राप्ति नही हो सकती।
(६) जैसे चित्रकार विभिन्न चित्रो की रचना करता है, वैसे ही नाम कर्म के आधार से ही आत्मा पुद्गलो द्वाग शरीर की रचना करता है, पाचो प्रकार के शरीरो की रचना का आधार यही कर्म है।
(७) कुम्भकार जैसे मिट्टी में से छोटे बड़े आकारों की रचना करता, वैसे ही गोत्र कर्म उच्च अथवा नीच का भर उत्पन्न करता है।
(८) दान-दाता जैसे किसी याचक को देना चाहता है किन्तु भडारी रोक देता है, वैसे ही आत्मा अपनी शक्ति में परि वर्तन चाहता है, परन्तु अन्तराय कर्म के कारण से शरीरधान जीव के उपयोग मे वह नही आती है। जैसे बीमार मनुष्य पास भोजन तैयार है, परन्तु वैद्य खाने की आज्ञा नही देता उसी रीति से इस कर्म को समझना चाहिये।
। (२) स्थिति वंध-
___ इन आठ कर्मों का आत्मा के साथ बधन होने के ६ आत्मा के साथ इनकी कम से कम समय की सगति जघ स्थिति कहलाती है और अधिक से अधिक समय की मर उत्कृष्ट स्थिति कहलाती है । निम्न कोष्टक द्वारा इमका ज्ञान सकेगा। मोहनीय आठो कर्मों का राजा है, इसकी रियति मा । से अधिक है।