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तृतीय भाग)
(११७ पालन किया जाना चाहिए(५) आयुकर्म
(१) बहुत परिग्रह, बहुत आरम्भ और महती हिंसा तथा महान् खराव आदतो ( मद्य-मासाहर आदि ) से नरक के आयुष्य का बन्धन होता है ।
२) कपट, धोखा, स्वर्थ, छल, अधिक नफाखोरी, अधिक ब्याजखोरी आदि से तिर्यञ्च के आयुष्य का बन्धन होता है।
(३) देवो मे सम्यक्त्वी और मिथ्यात्वी दोनो प्रकार के... होते हैं । सम्यक् तप, सम्यक् त्याग और सम्यक् सयम में कुछ मोह-भावनाओ के उत्पन्न होने पर उच्च देवगति की प्राप्ति होती है।
दान, किंचित् त्याग और परोपकार करते समय कुछ लौकिक भावनाएं आ जाने पर मध्यम देवगति की प्राप्ति होती है।
परतत्ररूप से अथवा अन्धानुकरण रूप से कुछ-कुछ __ शुभ कार्य करने से सामान्य देवगति की प्राप्ति होती है।
(४) स्वाभाविक सरलता, स्वाभाविक नम्रता, न्याय, दया, उदारता, सत्य प्रियता, परोपकार, अल्प परिग्रह मे सतोप आदि गुणो द्वारा मनुष्य गति की प्राप्ति होती है ।
इन चारो गतियो को रोकने में ज्ञान मदद करता है और , चारित्र द्वारा ये दूर होती हैं । मनुष्यगरीर द्वारा ही चारित्र का .
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