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तृतीय भाग )
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हैं, घातीकर्म नाश होने पर देह-आयु के क्षय के साथ ये चारो ही मघातीकर्म क्षीण हो जाते है ।
जो एक मोह को जीतता है, वह सभी को जीत लेता है । मोक्षतत्त्व:
मोक्ष अर्थात् कर्मों से मुक्त होना | सभी वासनाओ से छूटना यही मोक्ष है । मोहनीय आदि चारो कर्मों के सपूर्ण क्षय होने पर केवलज्ञान और वीतरागभाव प्रकट होता है किन्तु उस समय में वेदतीय आदि चार अघातीकर्म अत्यन्त सामान्य अवस्था में रह जाने पर भी मोक्ष की प्राप्ति नही होती है । जिस समय सम्पूर्ण कर्म क्षीण होते है, उसी समय जन्म-मरण का चक्र बन्द हो जाता है । यही मोक्ष है ।
जैसे पानी मे डूबा हुआ तुवा लेप छूटने पर पानी की सतह पर तैरता हुआ आ जाता है, वैसे ही कर्मों से मोक्ष प्राप्त आत्मा भी अपने मूलस्वरूप को प्राप्त कर लोक के सर्वोच्च भाग पर पहुँच जाता है, यही ऊँचा भाग 'मोक्ष' अथवा 'सिद्ध शिला'कहा जाता है ।
सिद्धगति कैसी है ?
वहाँ पर शरीर नहीं है, कर्म नही है, बुढापा नही है, मरण नही है, निराकार निरजन केवलज्ञानमय स्वरूप है, अक्षय आनदमय स्वरूप है ।
सिद्धगति प्राप्ति के पश्चात् क्या ?
सिद्धगति प्राप्त करने के पश्चात् अन्य कुछ भी प्राप्त करना