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जैन पाठावली )
नाम कर्म
१ ज्ञानावरणीय
२ दर्शनावरणीय
- ३ वेदनीय
४ मोहनीय
५ आयुष्य
६ नाम - ७ गोत्र
८ अन्तराय
जघन्य स्थिति
अन्तर्मुहूर्त
1.
वारह मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त
11
आठ मुहूर्त्त
11
अन्तर्मुहूर्त्त
उत्कृष्ट स्थिति
३० कोडाकोडी सागरोपम
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३०
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७०
३३ सागरोपम
२० कोडाकोडी सागरोपम
33
( १०९
11
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(३) अनुभव बन्ध-
जैसे किसी मिठाई में घी अधिक होता है तो किसी में कम होता है, वैसे ही कर्मकर्ता कोई जी कम शक्ति वाला होता है, तो कोई अधिक शक्ति वाला होता है, इसी प्रकार कोई-कोई एक ही जीव आत्मा - अमुक काम मे और अमुक स्थान पर कम शक्ति वाला होता है, जब कि किसी अन्य काम में और अन्य स्थान पर अधिक शक्ति वाला होता है, तदनुसार वही पद्धति फल देने की शक्ति के संबध मे भी है । जैसे चिकने परमाणु समान चिकना - हट वाले परमाणुओं के साथ नहीं चिपकते हैं, किन्तु चिकनाहट की मात्रा कम अथवा अधिक परिमाण में होने पर चिपक जाते हैं उसी प्रकार आत्मा में मोह की चिकनाहट यदि बढती है तो कमप्रदेश भी अधिक चिपकते है और वह अधिक मात्रा वाली चिकनाहट आत्मा के गुणो पर अपना प्रभाव डालती है, यही