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तृतीय भाग) चारित्रमोहनीय के २५ (१६ कषाय चारित्रमोहनीय और ९ नौ कषाय चारित्रमोहनीय ) इस प्रकार कुल २८ भेद गुणस्थानक के प्रकरण में लिखे गये हैं । (५) आयुष्य कर्म की चार प्रकृतियां
आयुष्य कर्म के उदय से १ देव, २ मनुष्य, ३ तिर्यञ्च, और ४ नरकगति मे यथावधि आयुष्य पूरा करना पड़ता है। नामकर्म की ४२ अथवा ९३ प्रकृतियां:
नामकर्म की ४२ प्रकृतियाँ है । १४ पिंड प्रकृतियां
(१) सुख-दुख को अनुभव कराने योग्य देव आदि चार गतियो को प्राप्त कराने वाला कर्म गनि नामकर्म है, इसके चार भेद हैं।
(२) एकेन्द्रिय से पचेन्द्रिय तक की जाति का अनुभव कराने वाला- कर्म जाति नामकर्म है, इसके ५ भेद हैं।
(३) औदारिक आदि गरीरो को प्राप्त कराने वाला कर्म शरीर नामकर्म है, इसके पाँच भेद हैं।
(४) शरीरगत अग उपाग का निमित्त बनने वाला कर्म अगोपाग नामकर्म है, इसके ३ भंद हैं ।
(५) पहिले प्राप्त किये हुए शरीर पुद्गलो के साथ अन्य । पुद्गलो का सबध जुडाने वाला बन्धन नामकर्म है, इसके ५ भेद हैं ।
(६) बाँधे हुए पुद्गलो को शरीरानुसार आकार में सयोजित करने वाला सघात नामकर्म है, इसके ५ भेद है।