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जन पाठावली)
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आठ कर्मों के दृष्टांत१) जिस प्रकार बादल सूर्य को ढाक देते हैं, उसी प्रकार आत्मा के ज्ञानसूर्य को ज्ञानावरणीय कर्म ढाक देता है । (२) जैसे राजा की . कचहरी में जाते समय द्वारपाल रोक देता है और राजा मे भेंट नही की जा सकती है, वैसे ही आत्मा रूपी राजा की भेट को दर्शनावरणीय द्वारपाल रोकता है। ऑग्व के होने पर भी आँख पर-पट्टी बांध देने से दिखाई नही देता है, उसी प्रकार शक्ति के होने पर भी दर्शनावरणीय कर्म के कारण से आत्मा की शक्ति के प्रति श्रद्धा नही होती है । (३) वेदनीय के दो भेद है-(१) साता वेदनीय और (२) असाता वेदनीय । तलवार की धार पर लगा हुआ शहद चाटने पर मीठा लगता है परन्तु सावधानी नही रवखी जाय तो जीभ कट जाती है। इसी रीति से सातावेदनीय समझ लेना चाहिये। इस. शरीर द्वारा अनुभव किये जाने वाले सुख के अथ्वा हर्प के प्रसगो में आत्मा असावधान रहे तो दण्डनीय होती है।
असातावेदनीय तो शक्कर के समान सफेद पत्थर जैसा ही है, जिामें मधुरता नहीं है । ज्ञानी इम अवस्था मे विशेष दुख नही मानता हआ विवेकपूर्वक शाति के साथ असातावेदनीयजनित दुखो को सहन कर लेता है।
(४) मोहनीय शराब जैसा है। जैसे शराव मनुष्य के विवक को भुला देता है, इसी प्रकार मोहनीय आत्मा के सम्यक्त्व और चारित्रगुण को आच्छादित कर देता है।