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( तृतीय भाग, कि चेतन आत्मा अनन्त शक्तिशाली है, तो फिर अनन्त शक्तिशाली आत्मा के ऊपर इन जड तत्त्वो का जोर कैसे चलता है ?
__उत्तर-कर्म अर्थात् जीव के साथ चिपके हुए पुद्गल, यह अर्थ लिया जाय तो वह जीव कर्मवाला हुआ। कर्मवाले जीव की अनन्त गक्ति भले ही सत्ता रूप (अस्तित्वरूप ) हो, किन्तु वह प्रकट रूप मे नही है, इसीलिए कर्मों की शक्ति उसके ऊपर प्रभाव डाल सकती है। द्रव्यकर्म और भावकर्म
कर्म को केवल जड ही नही कहा जा सकता है, वे जीव के साथ मोह की चिकनाहट के कारण चिपके हुए है । जी मोहग्रस्त हुआ, यही कर्म को आमत्रण देने की स्थिति हुई, इर्स का नाम भावकर्म है और भाव कर्म के बल पर ही पुद्गल पर माणु आत्मा के साथ सबन्धित हुए इसका नाम द्रव्यकम है इसीलिए कर्म को अन्य पुद्गलो के समान केवल जड ही नहं कहा जा सकता है । उनमे भावकर्म का सम्बन्ध तो सीधा मोह वशात् जीव के साथ ही है, इसीलिए उसकी सत्ता चलती है
जीव और पद्गलों का सम्बन्ध कैसे हुआ
जीव और पुद्गल दोनो परस्पर मे भिन्न-भिन्न धर्म वाले है; दोनो स्वतन्य द्रव्य हैं, दोनो मे से क्सिी भी एक का अस्तित्व नष्ट हो जाय ऐसा होने का नही। ऐसा होने पर भी दोनो का मगम कैसे हुआ? यह आश्चर्य की बात है। मोह के वश से हा अथवा अज्ञान के कारण, से हुआ, ऐसा माना जाता है
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