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___जैन पाठावली)
संघर्ष को शात करता है, और वास्तविक वस्तु-स्थिति की स्थापना करता है। ____ इस दृष्टिकोण से ईश्वरवाद भी निरुपयोगी तो नही कहा जा सकता है, जो आत्माएँ सामान्य भूमिका से आगे प्रगति करती हुई आत्म-विकास के लिये प्रयत्न करती है, उनके लिये “ईश्वर का आलबन सर्वप्रथम सरल उपाय है, आत्मा के परिपूर्ण विकास की साधना करके परम ध्येय को प्राप्त महात्मा पुरुषो के जीवन का आदर्श मुमुक्षुओ के लिए सहायक होता है, इस रीति मे ईश्वरवाद व्यर्थ नही है । किन्तु जिन्होने कुछ प्रगति की है, ऐसे पुरुषो के लिये केवल ईश्वरवाद से कुछ नही होने का, उनको तो अपने मे रहे हुए ईश्वरत्व को ( आत्मधर्म को ) याने परमतत्त्व को पहिचानना होगा। यही कर्मवाद का तत्त्वज्ञान पचेगा। इस भूमिका के पश्चात् जैनदर्शन का आरभ होता है, इसीलिए यहाँ कर्मवाद के तत्त्वज्ञान का विवेचन किया गया है ।
ईश्वर के बिना भी कर्मफल की प्राप्ति कैसे हो
अज्ञानी जीव कर्म का अनुसरण करता है, इस बात को स्वीकार कर लेने पर भी फल कैसे प्रदान करता है ? यह प्रश्न उत्पन्न होगा ही। इसका समाधान ऐसा है कि मनुष्य जहर पीता है, उस जहर को पीने वाले के प्रति जहर का द्वेष नही है जहर तो कर्मों की अपेक्षा सर्वथा भिन्न जडरूप है तो भी वह पीनेवाला तो मरता ही है, इसका कारण जहर का स्वभाव है, यही बात कर्म के लिये भी समझ लेना चाहिए-1 . .