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तल्ल-विभाग
जीव के समान जिममें उपयोग अथवा भाव नहीं हो है, वह अजीव तत्त्व कहा जाता है। ज्ञानादि शक्ति से रहित 'ई' कहा जाता है।
अजीव तत्त्व में पुद्गलास्तिकाय, धर्मास्तिकाय, अधर्मानिकाय, आकाशास्तिकाय और काल का विवेचन दूसरी पाठावली में हो गया है। पुद्गलास्तिकाय मे से कर्मवर्गणा के पुद्गरों को जीव माह की चिकनाई वश खीचता है जिसमे जन्म-मल होता है, यह विचार भी कर चुके । अब पुण्य, पाप, मानव मवार, निर्जरा, बन्ध और मोक्ष तत्त्व का वर्णन इसमें विषा जायगा।
जीव के साथ पुद्गलो का आकर्षण होता है वह दो प्रकार का है-१ शुभ और २ अगुभ । गभफल का दाता पुण्य है। और अगमफल का दाता पाप है । वह पुण्य और पाप क्या है। कर देगना है।
३-पुण्यतत्त्व और ४-पापतत्त्वसामान्य व्यारया
पुष्प अर्थात् पवित्र, 'गुण्य अर्थात् अच्छा । जैनतत्त्वज्ञान में भागो मी पुण्य कहा गया है । शुभ क्रिया का परिणा बम ही हो जाता है, पर नहीं भूलना चाहिए । यह स्वाभावित