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जैन पाठावली
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यहाँ पर किया जा चुका है । हास्य, कुविनोद से कैसा पाप होता है? इनकी साक्षी पाडव कौरव का युद्ध देता है । द्रौपदीजी के एक ही सराव वचन के कारण दुर्योधन ने भरी सभा में द्रोपदी का अपमान करने का प्रयत्न किया था ।
इन्द्रियाँ रूपी घोडो को लगामरहित रखने से, वाणी पर विवेक नही रखने से तथा मन के अनिष्ट विचारो को नहीं रोकने से जो अनर्थ होता है, इस सम्बन्ध मे अपन अनेक दृष्टान्त देख चुके है इसलिए आश्रय को रोकने का प्रयत्न करना ही चाहिए ।
संवर तत्त्व
व्याख्या
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ara के निरोध का नाम संवर हे अर्थात् नाश्रव के प्रकरण में कहे हुए द्वारो को रोकना ही मवर है । समभाव चनायें रमना ही सवर है । सद्धमं सवर है, समकित सवर है । जिन प्रकार किसी एक कुएं को खाली करना है तो सर्व प्रथम उनके जनप्रीत को बन्द करना पडता है, इसी प्रकार पापों
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दूर रहने के लिए, पापो से रहित होने के लिए सर्वप्रथम उनको रोकना पडता है ।
चिरकाल से जीव जिन-जिन क्रियाओ को करता है उनको नार को वागना ने करता है । उसे वास्तविक मार्ग का किनने के लिए वासनाओं का परित्याग करके आत्मा को