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(तृतीय भाग (१०) मिथ्यादर्शनशल्य क्रिया- अज्ञानरूपी--मिथ्यात्वरूपी शल्य
से होने वाली हिंसा । ' (११) दृष्टिका क्रिया-द्वेषदृष्टि से अथवा वैरभाव से देखने पर
होने वाली हिंसा। ' (१२) स्पष्टिका क्रिया-कोमल अथवा कठोर स्पर्श होने पर
पैदा होने वाले विकार अथवा दुर्भा
वना जनित हिंसा । (१३) प्रातीतिकी क्रिया-ईर्पा से-पर उन्नति के प्रति असहि
ष्णुता से उत्पन्न होने वाली हिंसा । (१४) सामतोपनिका क्रिया-अपनी प्रशसा से अहकार करने
पर उत्पन्न होने वाली हिंसा । (१५) न्यस्तिका क्रिया-जीव अथवा अजीव को फेकने से
लगने वाली हिंसा । (१६) स्वहस्तिका क्रिया-अपने हाथ द्वारा अथवा अन्य रीति
से शिकार द्वारा लगने वाली क्रिया । (१७) आज्ञापनिका क्रिया अन्य को आदेश देकर कराई जान
वाली क्रिया । (१८) विदारणिका क्रिया-जीव आदि को विदारण करने से ।
अथवा अन्य किसी के पाप को प्रका
शित करने से लगने वाली क्रिया। (१९) अनाभोग प्रत्यया-अकारण ही वस्तुओ को उठाने अथवा
रखने मे अविवेकता जाहिर करने से । लगने वाली क्रिया ।