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जैन पाठावली
८७ क्रियाएं भी आथव के कारण रप.ही है, इस प्रकार आश्व के कुल ४२ भेद हैं । ( पाच अनन, पाच इन्द्रिय-विषय, चार कापाय, तीन अशभयोग और २५ क्रियाएँ ।)
२५ क्रियाओं का वर्णन इस प्रकार है:(१) कायिकी क्रिया-अविवेक अथवा दुर्भावना पूर्वक काया
(गरीर) द्वारा होने वाली हिंसा । (२) अधिकरणिका किया- शस्त्र द्वारा की जाने वाली ह्मिा । (३) प्रादोपिकी क्रिया-प्रोध के कारण उत्पन्न होने वाली हिंसा। (४) पान्तिापिनी क्रिया-वुद को अथवा दूसरे को ताप-क्लेग
पहुंचाने से उत्पन्न होने वाली हिसा । (५) प्राणातिपातिका क्रिया-प्राण दस हैं- पांच इन्द्रियों,
पांच बलप्राण, मन बलप्राण,
वचन वलप्राण, काया बलप्राण, आयुष्य बलप्राण और स्वानोच्छ्वास बलप्राण, जीव के इन प्राणों में से किमी भी प्राग को नाट करने अथवा
कष्ट देने से उत्पन्न होने वाली हिमा। (६) आरम्भिगा किया-आरम्भ के कारण होने वाली हिंसा । (७) परिग्रहिका किया--परिगह के कारण होने वाली हिंसा । (८) मायावत्तिया प्रिया-गाई करने से उत्पन्न होने वाली हिना। (९) अप्रत्यारयान किया-त्याग करने योग्य का त्याग नहीं
करने से होने वाली हिंसा ।