________________
जैन पाठावली)
१ शका:
आत्मा आँखो से दिखाई नहीं देता । अतएव आत्मा है या नही? पुण्य-पाप जैसे कोई तत्त्व है भी या नही? कौन जाने परलोक है या नहीं? इस प्रकार की शकाओ के कारण सत्य की प्राप्ति में कठिनाई आती है। २ कांक्षा :
मिथ्या मत की इच्छा करना । गुरु या धर्म की सेवा करने में स्वार्थ की भावना रखना । इस लोक या परलोक के , सुखो की इच्छा से देव-गुरु की स्तुति-उपासना करना भी काक्षा दोप है। ३ विचिकित्सा -
धर्म-क्रिया के फल मे शका करने से यह दोष लगता है। _ 'इम क्रिया का फल मिलेगा या नही?' इस प्रकार की शका करने से भी सच्ची श्रद्धा नहीं टिकती।
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन । अर्थात्- कर्तव्य किये जा, फल की परवाह मत कर । यह सिद्धान्त प्रत्येक मनुष्य को अमल में लाना चाहिए । ४ परपाखडप्रशंसा:--
उग अनिचार का नहीं अयं ममझ लेने की आवश्यकता है । बहुत से लोग उन अतिचार का अर्थ-- दूसरो की प्रशसा पन्ना' एना करते है। पावडी का अर्थ है-दगावाज, कपटी । ऐगे आदमी की प्रशंसा कैसे की जा सकती है ? ऐसा