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जैन पाठावली )
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दृढ होता है, आसो का तेज वढता है, उम्र लम्बी होती है, चेहरे पर चमक आती है, और परलोक भी सुधरता है । इसलिए ब्रह्मचर्य की तरफ पूरी तरह ध्यान देने की आवश्यकता है । बालकों के जीवन - विकास के लिए :
बालक अर्थात् कोमल पौधा । उसे छूटपन से हो मलीभाति सभाला जाय तो सुन्दर फल मिल सकते हैं। कोमल पौधे को जिस ओर झुकाया जाय उसी ओर झुक सकता है। इसी तरह बालक में जैसे सस्कार डालना चाहे वैसे डाल सकते है । मगर बालको का सुधार माता-पिता के ऊपर निर्भर हैं ।
इसलिए श्रावको को अपने तथा अपनी संतान के जीवनविकास के लिए इस व्रत की ओर पूरा ध्यान देना चाहिए । ब्रह्मचर्य व्रत के अतिचार :
अपनी विवाहिता किन्तु छोटी कच्ची उम्र की स्त्री के साथ कामभोग का सेवन किया हो तो " इत्तरियपरिग्गहियागमण " दोष लगता है ।
(२) जिस स्त्री के साथ शादी नही हो चुकी है सिर्फ सगाई हुई है, उसके साथ काम - क्रीडा की हो तो " अपरिग्गहियागमण " दोष लगता है । क्योकि जब तक समाज के सामने विवाह नही हुवा है, तब तक उसके शरीर का उपयोग करना नीतिविरुद्ध है । इसके अतिरिक्त सगाई हो जाने पर भी, कारण- विशेष उपस्थित हो जाने पर दूसरी जगह विवाह