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जैन पाठावली)
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पाठ तेहरवाँ
पहला अहिंसाव्रत और उसकी मयादा
( थूल प्राणातिपात विरमणव्रत ) ___ अहिंसा की उपयोगिता :
जैसे हमे जीवित रहना प्रिय है, उसी प्रकार सभी को प्रिय है। आत्मा की अमरता समझना इस जीवन का प्रयोजन है । इस प्रयोजन को सिद्ध करने के लिए शरीर का मोह घटाये बिना छुटकारा नहीं । इस प्रकार की भावना से सयम पैदा होता है । तप उत्पन्न होता है और दूसरे को तनिक भी कष्ट न पहुंचाने की दया का जन्म होता है ।
जहाँ विचार है वही यह सब उत्पन्न हो सकता है। विचार मनुष्य को हो सकता है, इसलिए अहिंमा मनुष्य का धर्म सावित होता है। प्रत्येक धर्म में दया को स्थान मिला है। दया के बिना धर्म बन ही नहीं सकता और क्या ही अहिंगा है। इसी कारण कहा गया है- " अहिमा परमो धर्म " हिसा या दया मनुष्य के लिए खास तौर से उपयोगी है।
हिसा का त्याग करना हिमा है । मगर इतने से काम नहीं चलता । हिमा का त्याग करने के नाथ हिमा का मुकाविला भी करना चाहिए । दुनरे की हिंसा की अपेक्षा आत्मा को हिसा अधिक हानिकारक है । अनाएर उसे नहीं होने देना चाहिए।