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जैत-पाठावली)
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अर्थ तीसरा अणुव्रत स्थूल अदत्तादान (चोरी) से विरति ।
अदत्तादान पाच प्रकार के कहे गये हैं। वह इस प्रकार(१) खात खनना (२) गाठ काटना (३) ताला तोडना (४) पडी हई वस्तु लेना (५) मालिक वाली चीज विना पूछे लेना, इत्यादि स्थूल अदत्तादान लेने का पच्चक्साण ।
जीवन पर्यन्त दो करण तीन योग से चोरी करूँ नही, कराऊँ नहीं, मन वचन काय से । ऐसे तीसरे अदत्तादान विरमण व्रत के पाच अतिचार जानने योग्य हैं, आचरण करने योग्य नही हैं । वे इस प्रकार -
अर्थ (१) तेनाहडे- चोरी का माल लिया हो । (२) तक्करप्पओगे-- चोर को उत्तेजन दिया हो । (३) विरुद्धरज्जाइक्कमे- (चुगी-चोरी आदि ) राजविरुद्ध
काम किया हो। (४) फूडतुलकूडमाणे- झूठा नाप तोल किया हो। (५) तप्मडिरूवगववहारे-वस्तु में मिलावट की हो।
तो तस्स मिच्छा मि दुक्कडं।