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जैन पाठावली )
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(६) दिशापरिमाणव्रत ( ७ ) उपभोगपरिभोगपरिमाणव्रत ( ८ ) अनर्थदण्ड विरमणव्रत ( ९ ) सामायिकव्रत (१०) देशावका शिकव्रत ( ११ ) प्रतिपूर्ण पौषधव्रत (१२) अतिथिसंविभागव्रत । व्रती बनने की योग्यता:
अहिंसा सत्य आदि व्रतो को लेने की प्रतिज्ञा कर लेने मात्र से ही कोई सच्चा व्रती नही वन जाता । सच्चा व्रती बनने के लिए सब से पहली और बहुत आवश्यक शर्त शल्यरहित होना है । सक्षेप मे शल्य के तीन भेद है - ( १ ) माया अर्थात् दभ, धोखा या ठगने की वृत्ति (२) निदान अर्थात् भोगो की इच्छा और ( 3 ) मिथ्यात्व अर्थात् सत्य पर विश्वास न रखना या खोटे की पकड़ रखना |
रूप में, यह
मौजूद रहते हैं
साधारणतया प्रत्येक मनुष्य में, कम वढ तीनो दोप मौजूद रहते हैं । यह दोष जब तक तव तक हानि ही उठानी पडती है । इनके कारण आत्मा गजवूत नही हो पाती । इसी कारण शल्य वाला मनुष्य अपने व्रतों का हढता के साथ पालन नही कर मकता । उसके व्रत दूषित रहते है । अतएव सच्चा प्रती बनने के लिए ऊपर बतलाये हुए तीनो दोषो का त्याग कर देना ही उचित है ।
उसके सिवाय एक बात और ध्यान में रखनी चाहिए । यह है कि जैनधर्म भावना को बहुत महत्त्व देता है |