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( तृतीय भाग
अर्थ
(१) सबाओ अदिनादा- | चोरी से सर्वथा छूटना, अचौर्य णाओ दिरमण व्रत :- महावत है । (२) सव्वाओ मेहुणाओ विषयभोग से सर्वथा निवृत्त विरमण व्रत :-
होना, ब्रह्मचर्य महाव्रत है । (३) सव्वाओ परिग्गहाओ परिग्रहसेसर्वथा छूटना परिग्रह विरमण व्रत :-
त्याग अपरिग्रह-महाव्रत है।
अणुव्रत बारह है :
वारह अणुग्रतो में पाच मूलयत है । इन मूल व्रतो के रक्षण, उपयोग और शुद्धि के लिए गृहस्थ जिन दूसरे तो को स्वीकार करता है, वे उत्तर प्रत कहलाते हैं। उत्तर प्रत सात है। उनमें से पहले के तीन गुणयत कहलाते है और बाकी के चार शिक्षीव्रत कहलाते है।
अर्थ (१)स्थूल हिंसा विरमणवत-हिसा का मर्यादित त्याग करना। (२) , मृषावाद , -अमन्य का , (३) , अदत्तादान , -चोरी का , (४) , मैथुन , -पर स्त्री का त्याग और स्व
म्यी की मर्यादा करना । (५) , परिग्रह , -परिगह की मर्यादा कर लेना।