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( तृतीय भाग
मंतए । ( ४ ) मोसुवएसे (५) कूडलेहकरणे । तस्स मिच्छामि दुक्कड |
अर्थ
दूसरा अणुव्रत स्थूलमृपावाद से विरमण । वह मृपावाद पाँच प्रकार का कहा गया हैं । वह इस प्रकार - ( १ ) वर-कन्या सब झूठ ( २ ) पशु संबंधी झूठ ( ३ ) भूमि सबधी झूट (४) धरोहर को हजम करने सवधी झूठ ( ५ ) झूठी गवाही । इत्यादि मोटा झूठ बोलने का पच्चक्खाण |
में जीवन - पर्यन्त दो करण तीन योग से मृपावाद (झूठ ) बोलू नहीं, बुलवाऊँ नहीं, मन, वचन, काय से । ऐने दूसरे मृपावाद विरमण व्रत के पाच अतिचार जानने योग्य है, आचर योग्य नहीं है । वे इस प्रकार हैं ।
मूल
(१) सहसव्यक्खाणे - बिना सोचे-विचारे सहसा झूट बोला जाना अर्थ (२) रहग्समाखाणे - किसी की गुप्त बात प्रकट करना । (३) सदारमंतए - अपनी स्त्री या मित्र का गुप्त भेद
प्रकट करना ।
लूटा उपदेश या खोटी सलाह देना झूठा केस - दस्तावेज वगैरह लिसना तत्स मिच्छामि दुक्कडं ।
(४) मोतुबएसे - (५) कूडलेहकरणे
रवा का दूसरा अर्थ लम्बा विचार किये
ना बोलना भी दिया जाता है ।