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( तृतीय भाग
हरएक व्रत लेने वाला समान नहीं होता । अतएव योग्यत के अनुसार शास्त्रकारो ने व्रतधारियो के दो मुख्य विभाग किये हैं (१) अगारी और ( २ ) अनगार |
अगार का अर्थ है- घर । जो घर के साथ सवध रसत है वह अगारी कहलाता है । अगारी अर्थात गृहस्थ स्त्री-पुरुष ( श्रावक और श्राविका ) । घर के साथ जिसका संबंध नही वह त्यागी - मुनि अनगार कहलाता है । साधु और साध्वी दोन वर्गों के लिए 'अनगार' शब्द का व्यवहार होता है ।
यद्यपि अगारी और अनगार शब्दो का सीधासादा अर्थ क्रम से 'घर में रहने वाला' और 'घर में न रहने वाला' होता है, फिर भी यहाँ यह अर्थ लेना है कि जो नियमो में छूट रखता हो वह अगारी है और जो नियमो मे छूट न रखे वह अनगार | इसका आशय यह निकला कि घर में रहते हुए भी अगर काई पुरुष अनासक्ति रख सके तो वह भी अनगारतुल्य ही है। इसके विपरीत के पुरुष घर में न रहते हुए भो जगल में रहते हुए भी आमवित रसता है तो वह अगारी के समान है । अगारी और अनगार की यह एक सच्ची परीक्षा व्रत के सेव :
व्रतधारियों की योग्यता-शक्ति के अनुसार ऊपर उनके दो भेद बतलाये गये है। दो प्रकार के व्रतधारियों के कारण व्रतो के भी दो भेद है ।
(1) अणुव्रत (देवन ) -- पापी मे पूरी तरह निवृत्त होने की इच्छा होने पर भी जो गृहस्य सयोग और शक्ति न