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जैन पाठावली )
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मारना चाहिए | परन्तु जैसे वैद्य की कटुक दवाई से रोगी को दुःख होता है, माँ बाप द्वारा लडके को सुधारने का प्रयत्न करने में लड़के को दुख होता है, उसी प्रकार नीति की रक्षा के खातिर सामना करने या बचाव करने में भी हिंसा हो सकती है । इस प्रकार की हिंसा से भी श्रावक का व्रत खडित नही होता | जैनधर्मं श्रावक के लिए उत्तम है | श्रावक ऐसा न करे तो वह अहिंसा के नाम पर कायर कहलाएगा। इसी कारण भावहिंसा का सर्वथा निषेध किया गया है और उसी द्रव्यहिमा की छूट रक्खी गई है जो श्रावक के लिए अनिवार्य है । वैरभाव या विलास की दृष्टि से यह छूट नही है ।
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जहां वैर है, इच्छा है और विलास है वहाँ पाप है । पाप के घधे १५ फर्मादानो में वर्णन किये गये है | श्रावक ऐसे ध सद नही कर सकता । ऐसे धधो में जीवन की अनिवार्य आवश्यकताओ को पूरा करने की दृष्टि के बदले स्वार्थ की द्दष्टि ही मुग्य है ।
पन्द्रह कर्मादानो का विशेष खुलासा सातवे व्रत में किया जायगा । अहिंसाव्रत के अतिचार :
अहिमावत के उपयोग के विषय में और उसकी मर्यादा के विषय में इतना जान लेने के बाद अब हमें इस व्रत में उगने वाले अतिचारो या दोषो के विषय में विचार करना चाहिए | उस व्रत के पांच अतिचार है । इस व्रत में भूले तो बहुत-सी होती हैं, मगर उन सबका नमावेश इन पांच अतिचारों में ही हो जाता है । पान गतिचार इस प्रकार है
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