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(तृतीय भाग (१) मनोयोग के चार भेद.
(१) सत्य मनोयोग (२) असत्य मनोयोग (३) मिश्रमनोयोग (४) व्यवहार मनोयोग । (२) वचनयोग के चार भेदः- .
(१) सत्य वचन योग (२) अमत्य वचन योग (३) मिश्र वचन योग (४) व्यवहार वचन योग । (३) काययोग के सात भेदः
(१) औदारिक शरीर काय योग (२) औदारिक मिश्रशरीर काय योग (३) वैक्रिय शरीर काय योग (४) वैक्रिय मिश्र शरीर काय योग (५) आहारक शरीर काय योग (६) आहारक मिथ शरीर काय योग (७) कार्मण गरीर काय योग ।
शरीर के पाँच भेद हैं । इनका व्योरेवार वर्णन आगे किया जायगा । इन योगो द्वारा ही कर्मों का वध होता है और इसी से ससार है । जव आत्मा को योग रहित दशा प्राप्त होती है, तभी आत्मा ससार से छुटकारा पाता है। तभी यह सिद्ध और बुद्ध होता है।
योग और उपयोग के विषय में इतना जान लेने के बाद फिर हम ज्ञान की तरफ झुके । ज्ञानविकास के आठ नियम:
आत्मा के ज्ञान-गुण का विधान करने के लिए इन आठ नियमो पर ध्यान रखना चाहिए ।