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जैन पाठावली )
जाय तो ज्ञान प्राप्त नही होता । उदाहरणार्थं सुबह में अभ्यास करने के लिए बैठने वाला विद्यार्थी, दोपहर मे शायद ही कर सके । इसी कारण ज्ञानी पुरुष समय देखकर काम करने के लिए कहते है । ऐसा न करने से ज्ञान में दोप लगता है ।
सातवाँ पाठ ज्ञान
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' दिवस सम्बन्धी ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप के विषय में जो अतिचार लगे हो, उनकी आलोचना करता हूँ । प्रकार कहकर नीचे लिखा पाठ बोलना चाहिए
इस
मूलपाठ
आगमे तिविहे पन्नत्ते, त जहा :
सुत्तागमे, अत्थागमे, तदुभयागमे, एअस्त सिरिनाणस्स जे अइयारा लग्गा ते आलोएमि ।
(१) जं वाइद्धं ( २ ) वच्च सेलियं, (३) होणरखरं (४) अच्चरखर ( ५ ) पयहीणं (६) विणयहीण ( ७ ) जोगहीणं (८) घोसहीणं ( ९ ) सुट्ठदिनं (१०) दुट्ठपडिच्छियं ( ११ ) अकाले कओ सज्झाओ (१२) काले न कओ सज्झाओ (१३) असज्झाइए सज्झाय (१४) सज्झाइए न सज्झायं तस्स मिच्छा मि टुक्कडं ।
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