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जैन धर्म में अहिंसा
सूत्र :
सत्रों के चार प्रकार या विभाग हैं : श्रौत सूत्र, गह्य सूत्र, धर्म सूत्र तथा शूल्य सूत्र । राधाकुमुद मुकर्जी ने सूत्रों की रचना ई० पूर्व अष्टमी शती से ई० पूर्व तीसरी शती के बीच में माना है।' श्रौत सूत्रों का संबंध श्रुति से है इसलिए इन्हें 'श्रौत' कहते हैं
और गृह्य एवं धर्म सूत्र स्मृति पर आधारित हैं इसलिए इन्हें स्मार्त कहते हैं।
सूत्र काल में यद्यपि उपनिषदों से निकली हुई ज्ञानधारा प्रवाहित होती हुई देखी जाती है, ब्राह्मण और आरण्यक से प्रस्फुटित कर्म-काण्ड की धारा ज्यादा वेगवाली मालूम पड़ती है जिसकी जानकारी गृह्य सूत्रों एवं धर्म सूत्रों में प्रस्तुत क्रिया-काण्डों एवं सामान्य आचार आदि के वर्णन से प्राप्त हो सकती है और इसी के आधार पर सत्र काल में प्रसारित हिंसा-अहिंसा सिद्धान्त का भी ज्ञान हो सकता है। बौधायन, सांखायन, पारस्कर, आश्वलायन, आपस्तम्ब, खादिर, हिरण्यकेशी एवं जैमिनि आदि गृह्य सूत्रों में अन्नप्राशन, अर्घ तथा अष्टकाकर्म के निम्नलिखित वर्णन आते हैं जिनमें मांस-भक्षण की विधि बताते हुए हिंसा का समर्थन हुआ है :
अन्नप्राशन-जन्म के बाद छठे माह में बच्चे का अन्नप्राशन संस्कार होता है। इस अवसर पर बच्चे को अन्न तथा उपयोगिता के अनुसार विभिन्न प्रकार के मांस खिलाने का विधान है, जैसेयदि बच्चे में वचन-प्रवाह यानी अस्खलित बोलचाल की आदत डालनी हो तो उसे भारद्वाजी नामक पक्षी का मांस देना चाहिए। 1. “Although the chronology of the legal literature is uncertain, it can be assumed with probability that the older Dharma Sutras belonging to the Vedic schools date from between 800 and 300 B. C." Hindu Civilization,
p. 120. 2. “The former are so called as they are based on Śruti, but
both the Gșhya - and the Dharma-Sūtras are called Smarta, as they are based on Smrti ( tradition )". Vedic Age, p. 474.
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