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गांधीवादी अहिंसा यदि संभव हो सके तो हिंसा की शीघ्रातिशीघ्र समाप्ति की
जा सके।' महात्मा गांधी ने स्वयं भी कहा है .. मेरे लिए सत्य से परे कोई धर्म नहीं है और अहिंसा से बढ़कर कोई परम कर्तव्य नहीं है : 'सत्यान्नास्ति परो धर्मः' और 'अहिंसा परमो धर्मः'। मैंने जो कुछ लिखा है, वह मेंने जो कुछ किया है उसका वर्णन है और मैंने जो कुछ किया है, वही सत्य और अहिंसा की सबसे बड़ी टीका ( व्याख्या ) है।
अहिंसा की परिभाषा:
अहिंसा को परिभाषित करते हुए महात्मा गांधी ने कहा है१. 'अहिसा एक महाव्रत है। तलवार की धार पर चलने से भी कठिन है। देहधारी के लिए उसका सोलह आना पालन असंभव है। उसके पालन के लिए घोर तपश्चर्या की आवश्यकता है। तपश्चर्या का अर्थ यहां त्याग और ज्ञान
करना चाहिए। २. 'अहिंसा ही सत्येश्वर का दर्शन करने का सीधा और छोटा-सा
मार्ग दिखाई देता है। ३. 'अहिंसा के माने पूर्ण निर्दोषिता ही है। पूर्ण अहिंसा का अर्थ है
प्राणीमात्र के प्रति दुर्भाव का पूर्ण अभाव । ४. 'अहिंसा सत्य का प्राण है। उसके बिना मनुष्य पशु है।' १. गांधीजी, अहिंसा, द्वितीय भाग, खण्ड १०, आमुख. २. ,
" . , और 'जैनी अहिंसा'
___के बीच वाले पृष्ठ पर देखें । ३.
प्रथम प्रथम भाग, , पृष्ठ ३२.
, ७१.
"
७८.
६.
.
,
.
,
८१.
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