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जैन धर्म में अहिंसा किन्तु दिल में द्वेष, दुर्भाव आदि संजोये रखता है । अतएव रूढ़िवाद के आश्रय में गोमांस आदि का व्यवहार न करना अहिंसा की श्रेणी में नहीं आ सकता।'
पश्चिम में अहिंसा मनुष्य जाति तक ही समाप्त हो जाती है और उपयोगितावाद के नाम पर मनुष्य के फायदे के लिए अन्य जानवरों को चीरा-फाड़ा जाता है; युद्ध-संबंधी सामान एकत्रित किया जाताहै। किन्तु अहिंसावादी जीवित प्राणियों की चीर-फाड़ करने तथा युद्ध में सहायता देने के बजाय अपना प्राण ही दे देना अच्छा समझेगा क्योंकि अहिंसावादी सभी प्राणियों का हित चाहता है, सिर्फ मनुष्य का ही नहीं। जब अहिंसावादी सभी जीवों या अधिकांश का सुख चाहता है तो उसमें कुछ जीवों (जैसे मनुष्य जाति आदि) का भी सूख या लाभ सम्मिलित रहता ही है। यानी यहां पर अहिंसावाद और उपयोगिताबाद की भेंट हो जाती है लेकिन फिर अपने समयानुसार दोनों अलग हो जाते हैं।
अहिंसा और दया :
अहिंसा और दया के संबंध में गांधीजी के सामने कई एक प्रश्न उपस्थित किए गए और उन प्रश्नों के जो उत्तर उन्होंने दिये, उनसे यह स्पष्ट हो जाता है कि उनके मत में अहिंसा और दया का क्या संबंध है। प्रश्नों में से तीन प्रधान हैं जो निम्नलिखित हैं१. जब आप दया और अनुकम्पा के भाव से प्रेरित होते और काम
करते हैं, तब दया के बदले कई जगह अहिंसा शब्द का प्रयोग करते हैं। इससे गलतफहमी का पैदा होना संभव है, वह पैदा होती है । मुझे यह भी कह देना चाहिए कि मानी हुई दया झूठी भी हो सकती है।
१. गांधीजी, अहिंसा, भाग १, खण्ड १०, पृष्ठ १७-१८० २. वही, पृ.८३-८४. ३. वही, पृ० ११६.
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