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गांधीवादी अहिंसा
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इसलिए यह स्पष्टत: अधर्म है। इसने धर्म के बहाने लाखों, करोड़ों की हालत गुलामों की सी कर डाली है ।"
अतएव इस सामाजिक विषमता को दूर करने के लिए यह आवश्यक है कि हरिजनों को, जिन्हें अछूत कहा गया है, मेले, मन्दिर, पाठशाला आदि सार्वजनिक स्थानों में समान अधिकार दिया जाये । लेकिन ऐसा नहीं कि उनकी अस्पृश्यता दूर करने के लिए उनके पेशे छुड़वा दिये जायें, क्योंकि काम तो सभी बराबर ही हैं, कोई बड़ा या छोटा नहीं है। बल्कि जात-पात की जड़ काटना श्रेयस्कर है, क्योंकि यह अछूतपन की तरह समाज का एक बहुत बड़ा कोढ़ है; जब तक जात-पात की विषमता को दूर नहीं किया जाता है अछूतपन भी दूर नहीं हो सकता । यह छूआछूत दूर करने का प्रश्न सिर्फ मानवमात्र तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसकी व्यापकता जीवमात्र तक पहुँची इसलिए छूआछूत दूर करनेवाले व्यक्तियों को सिर्फ भंगियों और मोचियों को अपनाकर ही संतोष नहीं करना चाहिए, अपितु उन्हें जीवमात्र को अपनाना तथा समूची दुनिया के साथ मित्रता निभानी चाहिए | क्योंकि जीवमात्र के साथ भेद मिटाना ही छूआछूत मिटाना है ।
इस प्रकार गांधीजी ने अपने समाज में सिर्फ मनुष्यों को ही नहीं बल्कि पशु-पक्षियों को भी स्थान दिया है । उनके विचार में जिस प्रकार अपंग तथा अपाहिज के अलावा अन्य भिखमंगों को भिक्षा देना दोषपूर्ण है, ठीक उसी प्रकार गलियों में भटकते हुए कुत्तों को रोटी का एक-आध टुकड़ा दे देना दोष है, पाप है । कुत्तों को भी रहने को निश्चित स्थान तथा उचित भोजन मिलना चाहिए, क्योंकि ये बहुत ही वफादार साथी होते हैं । बेघर का कुत्ता समाज की सभ्यता या दया का चिह्न नहीं है बल्कि समाज के अज्ञान तथा [ आलस्य का ।
१. बापू और हरिजन, संकलनकर्ता - क्षेमचन्द 'सुमन', पृष्ठ २३,
६२.
२. वही.
३. वही, पृ० ५०.
४. वही, पृ० ६२.
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