________________
उपसंहार साथ ही अहिंसा के समर्थन में सबकी भलाई तथा आपस के प्रेम को प्रधानता दी गई है । यहाँ तक कि प्रेम किए बिना ईश्वर की प्राप्ति नहीं कर सकता, ऐसा भी कहा गया है।
पारसी-परम्परा प्रेमभाव को व्यापकता पर बल देते हुए यह कहती है कि शत्रु को भी प्यार करके अपना मित्र बना लेना चाहिए । किन्तु इसका यह सिद्धान्त स्वयं बाधित हो जाता है और संकुचित भी जान पड़ता है जब यह कहती है कि वे पश-पक्षी जो मुझे किसी प्रकार का अहित नहीं पहुँचाते अथवा हमारा हित करते हैं उन्हें मारना या किसी प्रकार का कष्ट पहुँचाना दोषपूर्ण कर्म है लेकिन वे पश-पक्षी जो हमारा अहित करते हैं उन्हें मारना या कष्ट पहँचाना दोष-रहित कर्म है। यहाँ पर अहिंसा का सिद्धान्त स्वार्थपरता से प्रभावित दिखाई पड़ता है।
यहूदी-परम्परा में अहिंसा के निषेधात्मक पक्ष को प्रकाशित करते हुए यह कहा गया है कि चोरी मत करो, व्यभिचार मत करो तथा अपने पड़ोसी की स्त्री अथवा अन्य किसी वस्तु पर बुरी नजर न रखो और विधेयात्मक पक्ष की पुष्टि में बन्धुत्व के भाव को प्रस्तुत किया जाता है। इसमें अहिंसा का सामाजिक रूप प्रकट होता है ।
ईसाई-परम्परा प्रतिकार के भाव का विरोध करती है। शत्रु से भी प्यार करो, उसके प्रति कोई गलत व्यवहार न करो, मन में वरभाव न लाओ। यदि कोई तुमसे एक वस्तु माँगता है तो अपनी दूसरी वस्तु भी उसे दे दो। पड़ोसी से प्रेम करो तथा शत्रु से भी। कारण, जहाँ पर विनम्रता है, बन्धुत्व है वहीं पर ईश्वर है। इतना ही नहीं इसमें दान की भी बड़ी ऊंची महत्ता दिखाई गई है।
इस्लाम में गाली, क्रोध, लोभ, चुगलीखाना, रिश्वत लेना, बेईमानी करना आदि को त्यागने का उपदेश दिया गया तथा भाईचारा, दान, दया, क्षमा, मैत्री, विनम्रता, उदारता आदि को ग्रहण करने को कहा गया है। इन उपदेशों से ज्ञात होता है कि इस्लाम भी हिंसाभाव का विरोधी और अहिंसाभाव का समर्थक है। किन्तु जहाँ पर मौहुदी ने यह कहा कि खुदा ने आदमी को सबसे ऊंचा जीव मानकर
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org