Book Title: Jain Dharma me Ahimsa
Author(s): Basistha Narayan Sinha
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 316
________________ उच्चार-प्रस्रवण उच्छ्रय उत्तरगुण उत्तराध्ययन उद उदक उद्रवणिका-विधि उद्योगी उदवर्तनविधि उद्वेग उद्वेगजनक उन्मूलना उपद्रव उपयोगितावाद उपासक दशांग उपेक्षा उमास्वाति उपधानश्रुत उपनिषद् उपभोग उपभोग - परिभोग-परिमाण उपभोगपरिभोगपरिमाण-व्रत ऋग्वेद ऋणकर ऋद्धि एकदेवतावाद उ Jain Education International अनुक्रमणिका २१६ १४७ १४७ १४५ १४५, १४६ १०२ ३, १० २१८ १११ २१८ २४३ १११, १४३, २११ ७३ ऋ १०७ १७६ २११ ११४ ओदनविधि १६२ १५६ २१८ ओद्द शिक १४४ १४० ३, १३३ १४६ १७६ एज्रा एपोक्राइफा एनॉक ५ कंग-फुत्जे-कंग कंपिलपुर कुडकोलिक कुकु कटकमर्दन कन्फ्यूशियस कन्यालीक कबीरदास कमलसंयम करण करिष्यतिदान करुणा कर्म कर्मकांड कर्मादान कल्याण कल्याणमित्रता कषाय कांति कापालिक कामदेव For Private & Personal Use Only ओ औं क २९७ ८५ ८७ ८७ २२० २३१ ६४ १२६ १११ १२५ १४६ ६३ २१४ ८० ११४ १८४ १६१ ७३, १८७ २२२ १० २२३ १७७ ६६ १४४, १५७ १७५ १३३ १११ www.jainelibrary.org

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