Book Title: Jain Dharma me Ahimsa
Author(s): Basistha Narayan Sinha
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
View full book text
________________
२८६
जैन धर्म में अहिंसा
प्राकृत और उसका साहित्य - डा० मोहनलाल मेहता, बिहार राष्ट्रभाषा परिषद्, पटना, १६६६.
प्राकृत भाषा और साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास -- डा० नेमिचन्द्र शास्त्री, तारा पब्लिकेशन्स, वाराणसी, १६६६.
प्राकृत साहित्य का इतिहास - डा० जगदीशचन्द्र जैन, चौखम्बा विद्याभवन, वाराणसी, १६६१.
*
बृहद्य सूत्र - व्याख्याकार- अमोलक ऋषि, हैद्राबाद - सिकन्द्राबाद जैन संघ, वीराब्द २४४६.
भगवती सूत्र ( भाग १-७ ) - व्याख्याकार - घासीलालजी, अ० भा० श्वे• स्था० जैन शास्त्रोद्धार समिति, राजकोट, १९६१-६४.
भारतीय संस्कृति में जैनधर्म का योगदान - डा० हीरालाल जैन, मध्य प्रदेश शासन साहित्य परिषद्, भोपाल, १६६२.
भिक्षु प्रन्थ रत्नाकर -- - खण्ड १-२, सं०-आ० तुलसी, जैन श्वे० तैरापंथी महासभा, कलकत्ता, १९६०.
भ्रमविध्वंसन - जयाचार्य, गंगाशहर, वि० सं० १६८०.
मुनि श्री हजारीमल स्मृति ग्रंथ - मुनि श्री हजारीमल स्मृति-ग्रन्थ प्रकाशन समिति, ब्यावर, १६६५.
मूलाचार - वट्टकेर स्वामी, सं०-पं मनोहरलाल शास्त्री, मुनि अनन्तकीर्ति दि० जैन ग्रंथमाला, १६१६.
योगशास्त्र - आचार्य हेमचन्द्र, सं०-मुनि समदर्शी आदि, प्र० - ऋषभचन्द्र जौरी किशनलाल जैन, दिल्ली, १९६३.
रायसेन इय-सुत -- व्याख्याकार - - पं० बेचरदास जीवराज दोशी, गुर्जर ग्रन्थरत्न कार्यालय, अहमदाबाद, वीर सं० २४६४.
वसुनंदि० श्रावकाचार - कोल्हापुर, १९०७.
व्यवहारसूत्र - व्याख्याकार - अमोलक ऋषि, हैद्राबाद, सिकन्द्राबाद जैन संघ, वीराब्द २४४६.
व्याख्याप्रज्ञप्ति - अभयदेव सूरीश्वरविरचितवृत्तिसमलंकृता, ऋषभदेव केशरी - मल जैन श्वे० संस्था, रतलाम, वि० सं० १९ε६. शुभाशुभ कर्मफल - स्वामी त्रिलोकचन्दजी, नवाशहर ( पंजाब ), ६६१. श्रमणसूत्र--मुनि अमरचन्द्र जी, सन्मति ज्ञानपीठ, आगरा, वि० सं० २००७.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
![](https://s3.us-east-2.wasabisys.com/jainqq-hq/caf0290c4be695c699dccbdacb3ea85b24337082526a82f4f8968000c5bda1bc.jpg)
Page Navigation
1 ... 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332