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गांधीवादो अहिंसा
२६३ त्रस सभी प्राणियों की हिंसा-अहिंसा के विषय में विचार किया है फिर भी देश-कल्याण की बात इसके सामने नहीं आती। कारण, इसके अनुसार आत्म-कल्याण ही सब कुछ है। इसमें अहिंसा ही क्या किसी भी रूप में राजनीति की समस्या नहीं आई है। यह एक विशुद्ध धार्मिक या दार्शनिक सिद्धान्त है।
इस प्रकार अहिंसा के क्षेत्र में गांधीवाद और जैनधर्म के बीच कुछ स्थलों पर समानताएँ मिलती हैं, किन्तु असमानता भी कम नहीं है। अहिंसा का सिद्धान्त दोनों ही मानते हैं, लेकिन दोनों की अहिंसा के उद्देश्य भिन्न-भिन्न हैं और उद्देश्य-प्राप्ति के साधन में भी प्रायः भिन्नता ही अधिक है और एकता कम ।
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