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जैन धर्म में अहिंसा पागल हो जाने पर तथा उसके द्वारा अन्य कुत्तों को काट खाने से उन सब के भी पागल होने की संभावना रहती है, जिससे बहुत बड़ी हिंसा हो सकती है क्योंकि पागल कुत्ते मनुष्यों, पशुओं आदि को काटेंगे जिससे अनेक प्राणियों को भी कष्ट हो सकता है। ऐसी हालत में कुत्तों का मारा जाना हिंसा नहीं हो सकता। अतएव मात्र जीवों का प्राणघात ही हिंसा नहीं कहला सकता।
अहिंसा की विशेषता:
अहिंसा एक मानसिक स्थिति है। अहिसक के लिए यह . आवश्यक है कि वह अहिंसा की स्थिति को समझे अन्यथा वह अहिंसा को अपना नहीं सकता। सामान्यतौर से ऐसा समझा जाता है कि दैनिक जीवन के व्यवहार की वस्तुओं को त्याग देने से अहिंसा का पालन हो सकता है, किन्तु मात्र भोजन त्याग देना ही अहिंसा हो ऐसी बात नहीं। रोगी अपनी रुग्णावस्था में तथा दुष्काल पीड़ित व्यक्ति भोजन नहीं करते। लेकिन इन दोनों का भोजन त्याग करना अहिंसा नहीं कहा जा सकता; क्योंकि इसमें भोजन का त्याग एक मजबूरी है, मन में तो भोजन प्राप्त करने की लालसा वर्तमान ही है। मजबूरी या बेवशी का संबंध कायरता से है, लेकिन अहिंसा क्षत्रिय का गुण है । कायर व्यक्ति के द्वारा अहिंसा का पालन असंभव है। जिसमें शक्ति है, जो शूरहै वही किसी पर दया कर सकता है, जो निरीह प्राणी है, कायर है, वह अपनी रक्षा के लिए दूसरों के सामने हाथ फैलाता है, वह दूसरों की रक्षा या दूसरों पर दया नहीं कर सकता।३ 'अहिंसा है जाग्रत आत्मा का गुणविशेष ।' यह अन्य गुणों का स्रोत है, मूल है। अतएव इसकी सफल साधना बिना विचार, विवेक, वैराग्य, तपश्चर्या, समता एवं ज्ञान के नहीं हो सकती। अहिंसा अंध-प्रेम भी नहीं है। अंध-प्रम के कारण माताएं अपने बच्चों को इस प्रकार
१. गांधीजी, अहिंसा, प्रथम भाग, खंड १०, पृष्ठ ५२-५५, ५६.६३ आदि. २. वही, पृ० १७. ३. वही, पृ० ६३. ४. वही, पृ०८०.
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