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जैन धर्म में अहिंसा
१४. सम्मत्ताएहणा-सम्यकत्वाराधना : सम्यकत्व की आराधना
अहिंसा पर ही आधारित होती है, अतः इसे सम्यकत्वा
राधना नाम से पुकारते हैं। १५. महंती-महती : धर्म के क्षेत्र में इसकी सर्वश्रेष्ठता ही इसका
नामकरण महती कराती है। १६. बोही-बोधि-सर्वज्ञी : यह सर्वज्ञ प्रतिपादित धर्म की प्राप्ति
करानेवाली है अतः इसे बोधि कहा जाता है। १७. बुद्धि-बुद्धि : यह सफलता देनेवाली है। . १८. धिती-धृति : अहिंसा चित्त को धृति यानी धैर्य देनेवाली
है, इसलिए इसे धृति कहते हैं। १६. समिद्धी-समृद्धि : यह समृद्धि यानी आनन्द की जननी है,
इसी कारण इसे समृद्धि नाम मिला है। २०. रिद्धी-ऋद्धि : ऋद्धि यानी लक्ष्मी अर्थात् धन देनेवाली होने
के कारण अहिंसा ऋद्धि कहलाती है। २१. विद्धी-वृद्धि : इसके कारण पुण्य प्रकृति की वृद्धि होती है
यानी पुण्यवृद्धि होती है, अतः इसे वृद्धि कहते हैं। २२. ठिई ( ठिती )-स्थिति : शाश्वत स्थिति यानी मोक्ष प्रदान
करनेवाली है, इसलिए इसे ठिती वा स्थिति कहते हैं । २३. पुट्ठी-पुष्टि : अहिंसा पुण्य का उपचय या संचय करती है
यानी पुण्य की पुष्टि करती है, अतः इसे पुष्टि कहते हैं। २४. नंदा-नन्दा : यह स्व या पर सभी जीवों को आनन्दित
करती है, इसलिए यह नन्दा कहलाती है। २५. भद्दा-भद्रा : यह अपने और पराये का भी कल्याण करती
है, इसलिए इसे भद्रा नाम से सम्बोधित करते हैं। १४. सम्यग्प्रतीतिरूपं स्याद्वादे सम्यग्बोधो वातस्य अाराधना-सेवना, १५. महन्ती सर्वधर्मानुष्ठानानां मध्ये बृहती यदुक्तं, १६. सर्वज्ञधर्मप्राप्ति: अहिंसा, १७. साफल्यकारणत्वात्, १८. धृतिश्चित्तदाढ्यं, १६. पानन्दहेतत्त्वात्, २०. लक्ष्मीहेतृत्वात्, २१. पुण्यप्रकृतिसम्पादनात्, २२. साद्यपर्यवसितमोक्षस्थितिहेतुत्वात्, २३. पुण्योपचयकारणत्वात्, २४. नन्दयति स्वं परं वा इति नन्दा, २५. कल्याणं स्वस्य परेषां वा करोतीति भद्रा,
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