________________
जैन दृष्टि से अहिंसा
१७९ ४४. ववसाअ-व्यवसाय : यह जीव का एक विशिष्ट व्यवसाय या
व्यापार है, इसलिये इसे व्यवसाय कहते हैं। ४५. उस्सअ-उच्छ्रय : शुभ भावों को उन्नति देने के कारण इसे उच्छ्रय
कहा जाता है। ४६. जन्न--यज्ञ : अहिंसा भाव पूजा रूप है, अत: यह यज्ञ नाम से
संबोधित होती है। यह व्याख्या ज्ञान विमलसूरि तथा घेबरचन्द्र बाँठिया द्वारा की गई है किन्तु घासीलालजी के अनुसार अहिंसा यज्ञ कहलाती है क्योंकि इससे स्वर्गादि सद्गति प्राप्त होती है । लेकिन भावपूजा का संबंध यज्ञ से तथा अहिंसा से होना सही दिखता है। क्योंकि पूजा यज्ञ का अंग है और भावपूजा भावप्रधान है, जैसा कि अहिंसा भी
भावप्रधान है। ४७. आयतण-आयतन-आश्रय : यह गुणों का आश्रय या स्थान है
अतः आयतन कहलाती है। ४८. यजण-यतन यह अभयदान देनेवाली होती है, अत: यजना कह
लाती है, अथवा प्राणियों की प्राणरक्षा का प्रयत्न करती है,
अतः यतना या यत्न कहलाती है। ४६. अप्पमाय-अप्रमाद : इससे प्रमाद का परित्याग हो जाता है इस
लिये इसे अप्रमाद कहते हैं। ५०. अस्सास-आश्वास : यह पर प्राणियों की तृप्ति का कारण है अथवा
कष्ट में इसके द्वारा दूसरों को धैर्य बंधाया जाता है, अत: इसे
आश्वास कहते हैं। ५१. वीसा -- विश्वास : अहिंसा अपने को तथा दूसरों को विश्वास
दिलानेवाली है. अतः इसे विश्वास की संज्ञा दी जाती है। ४४. विशिष्ट : शोभनः अवसायः अविकलभावसंपन्नत्वात् विशिष्ट व्यापारः, ४५. उच्छयो-भावोन्नतित्वं, ४६. यज्ञो भावदेवपूजा (ज्ञानविमलसूरि तथा घेवरचन्द बाँठिया ), स्वर्गादिसद्गतिदायकत्वात् , ४७. आयतनं-गुणानां आश्रयः, ४८. यजन (घासीलालजी) अभयस्य दानं यतनं वा-प्राणरक्षणप्रयत्नः, ४९. अप्रमादः प्रमादवर्जनं, ५०. आश्वासः परमतृप्तिहेतुत्वात् , ५१. विश्वासो-विसंभः प्राणिनां,
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org