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जैन धर्म में अहिंसा १०. आभरणविधि - आभरण का परित्याग करना जैसे आनन्द ने कहा कि मैं स्वर्ण-कुण्डल एवं अपने नाम की मुद्रा के अलावा दूसरे सभी आभूषणों का प्रत्याख्यान करता हूँ।
११. धूपविधि - धूप-दीप आदि को परिमाणित करना। जैसे आनन्द ने उपभोग-परिभोग का प्रत्याख्यान करते हुए कहा है कि मैं अगुरु, लोबान, धूप इत्यादि के अतिरिक्त अन्य सभी वस्तुओं का त्याग करता हूँ, जो धूप की जगह काम करती हैं।
१२. भोजन विधि – पेय वस्तुओं की मर्यादा निर्धारित करना। जैसे आनन्द गाथापति ने तत्कालीन मूग या चावल से तैयार एक विशेष प्रकार के पेय के अलावा अन्य सभी पेय वस्तुओं का त्याग किया।
१३. भक्ष्यविधि -पक्वानों को परिमाणित करना। जैसे आनन्द ने केवल घेवर तथा खाजे को ग्रहण करने और अन्य प्रकार के पक्वानों को त्यागने का वचन लिया।
१४. ओदनविधि-औदन यानी चावल या भात खाने पर नियंत्रण। जैसे आनन्द ने कहा कि मैं केवल कलम जाति के चावल को ही ग्रहण करने तथा दूसरे प्रकार के विभिन्न चावल त्यागने की प्रतिज्ञा करता हूँ।
१. नन्नत्य मट्ठकण्णोज्जए हिं नाम मुद्दाए य, अवसेसं आभरण विहिं
पच्चक्खामि ॥ - उपा० प्र० अ०, पृ० ३७. २. नन्नत्थ अगरु तुरुक्क धूवमादिएहिं, अवसेस धुवण विहिं
पच्चक्खामि । -उपा० प्र० अ०, पृष्ठ ३८. ३. नन्नत्य एगाए कट्टपेज्जाए, ञवसेसं पेज्जविहिं पच्चक्खामि ॥
-उपा० प्र० अ०, पृ० ३८. ४. नन्नत्थ एगेहिं घयपुण्णेहिं खण्डखज्जएहिं वा, अवसेसं भक्खविहिं
पच्चक्खामि । -उपा०, प्र० अ०, पृष्ठ ३६. २. नन्नत्य कलमसालि ओयणेणं, अवसेसं ओयणविहिं पच्चक्खामि ।
-उपा०, अध्ययन १, पृष्ठ ३९.
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