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जैनधर्म में अहिंसा
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पिंड -- सदा एक हो घर से मिलनेवाला भोजन, ४. अभ्याहृत - उपाश्रय आदि में प्राप्त भोजन तथा ५. रात्रिभोजन यानी रात में भोजन करना । इतना ही नहीं, रात्रिभोजन विरमण व्रत को पांच महाव्रतों के बाद आनेवाला छठा व्रत भी कहा है। रात्रिभोजनविरमण को व्रत की श्र ेणी में इसलिये रखा गया है कि इससे अहिंसा व्रत का पोषण होता है । रात्रि में भोजन करने से अनेक सूक्ष्म प्राणियों को हिंसा होती है, क्योंकि मनुष्य उन छोटे-छोटे प्राणियों को देख नहीं पाता । इसके अलावा छोटे-छोटे जीव कुछ ऐसे होते हैं जो रोशनी देखकर स्वतः आ जाते और चिराग आदि की लौ पर जलकर मर जाते हैं । अर्थात् रात्रि में भोजन करना हिंसा को बढ़ावा देना है । दशवे - कालिक सूत्र में ही आगे कहा है कि साधु सूर्यास्त के बाद तथा सूर्योदय के पहले अशनादि चारों प्रकार के आहारों को मन से भी त्याग दे, यानी इनके उपभोग की कल्पना मन में भी न लाये ।
समिति तथा गुति :
समितियां पाँच तथा गुप्तियां तीन होता हैं । ईर्ष्या, भाषा, एषणा, आदान और उच्चार समितियाँ हैं तथा मन, वचन और काय गुप्तियाँ | ये पांच समितियां साधु के चारित्र की प्रवृत्ति के लिए तथा तीन गुप्तियां अशुभ प्रवृत्तियों से निवृत्ति पाने के लिये होती हैं । ये बताती हैं कि साधु को गमनागमन में आलम्बन, काल, मार्ग और यतना की शुद्धि का सदा ध्यान रखना चाहिये । ईर्या समिति में ज्ञान, दर्शन और चारित्र आलम्बन स्वरूप होते हैं, काल दिवस है यानी रात में उसे कहीं
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१. उद्द े सियं कीयगडं, नियागं अभिहडाणिय । राइभत्ते, सिणाणेय गंध मल्ले य वियणे ॥२॥
दशवेकालिक सूत्र, क्षुल्लकाचार नामक तृतीय अध्ययन. २. अह्नावरे छट्ठे भंते ! वर राईभोयणाओ वेरमणं, सव्वं भंते ! राई भोयणं पच्चक्खामि ॥ १६६॥
- दशवैकालिक
३. अत्थगयमि आइच्चे, पुरत्थाअ अगुग्गए । आहारमाइयं सव्वं, मणसा वि न पत्थए ||२८||
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सूत्र,
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चतुर्थ अध्ययन.
- दशवैकालिक सूत्र, अष्टम अध्ययन.
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